सौराष्ट्र और कच्छ के इतिहास में देखे तो सभी पुरुषों के पहनावे में आगड़ि-चोइनी(गुजराती शब्द जो Saurashtra and kutch traditional dress है) दिखाई देती हैं। इस प्रकार का पहनावा मुख्य रूप से अहीर, महेर, रबारी, चारण और भारवाड़ में दिखाई देता है। जाति के आधार पर पोशाक में थोड़ा बदलाव होता है लेकिन मूल इस प्रकार का पहनावा होता है।
सौराष्ट्र और कच्छ में यह पहनावा सदियों चला आ रहा है। इस समय में भी कुछ गाँव के बुजुर्गों की वेशभूषा अभी भी ऐसी ही है। आधुनिक समय में युवाओं के लिए किसी भी सामाजिक अवसर पर इस तरह के पहनावे को पहनना एक फैशन बन गया है और ऐसे पारंपरिक कपड़ों के बिना कोई भी अवसर अधूरा लगता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उस समय सभी एक ही तरह के कपडे क्यों पहनते थे? इस प्रकार के कपड़े पहनने के कई कारण हैं जिन पर हम आज चर्चा करेंगे।
1)
पहले के समय का व्यापर कृषि और पशुपालन का था और इस तरह के पहनावे को इस तरह से डिजाइन(Design) किया गया था कि कृषि और पशुपालन के काम करने में कोई बाधा ना आये। इस पहनावे में ‘चोइनी’ का वस्त्र घुटण से पैरों तक चुस्त(tight) और जांघो के हिस्सों में ढीला(Loose) था इसलिए काम करने मे आसानी होती थी। इसके अलावा ‘आगड़ि’ को कमर के ऊपर के भाग से ढीला रखा जाता था ताकि शरीर हवा महसूस करे और गर्मी ना लगे।
नीचे दिए गए फोटो में कमर से नीचे की पोशाक को ‘चोइनी’ कहा जाता है और कमर से ऊपर के वस्त्र को ‘आगड़ि’ कहा जाता है। इन दो पोषाक को साथ में पहने पर “आगड़ि-चोइनी”(angadi choini) बोला जाता है।
2)
‘आगड़ि-चोइनी’ पहनावा मुख्य रूप से सफेद रंग का होता था। पुराने ज़माने में सफेद रंग मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक था इसलिए सभी वस्त्र मुख्य रूप से सफेद रंग के होते थे। इस प्रकार के वस्त्र खादी के कपड़े में से बनाए जाते थे खादी का रंग सफेद होता था। इस लिए खादी वस्त्र के रंग के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती थी।
3)
सफेद रंग प्रकाश का परावर्तन करता है इसलिए इस प्रकार के कपड़ो में गर्मी कम लगती थी। इसलिए यह कारण भी है की इस प्रकार का पहनावा सफेद रंग का था।
4)
इस प्रकार के कपड़ों को प्रादेशिक पहचान के लिए भी जाना जाता था। यानी दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति को उसके कपड़ों से भी पहचाना जा सके।
5)
ये कपड़े बनाने में आसान थे और बहोत मजबूत थे ताकि वे खेती या पशुपालन के व्यवसाय दौरान टूटें नहीं और लंबे समय तक चलें।
6)
इसके अलावा विभिन्न जातियों के लोगों के कपड़ों में थोड़ा बदलाव होता था ताकि उस जाति के पुरुष को पहनावे से उसकी की पहचान हो सके। इस प्रकार के कपड़ों के साथ उस समाज के रीति-रिवाज के साथ जुडी पगड़ी, मेलखोलियू(गुजराती शब्द) और साफा(गुजराती शब्द) इत्यादि चीजें पहनने वाले व्यक्ति का समाज में पूरा सम्मान किया जाता था।
-:- यदि आपके पास saurashtra and kutch के traditional dress ‘आगड़ि-चोइनी’ पहले के समय में क्यों ज्यादा पहना जाता था ?इसका कोई कारण जानते है और हमारे ध्यान में नहीं है तो आप हमें नीचे Comment Section में बता सकते हैं। इस तरह के टॉपिक्स के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।
Comments
Loading…